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Monday 17 July 2017

हडजोड़ – बढ़ती उम्र में हड्डियों का रक्षक


हडजोड़ या अस्थिसंधानक (वानस्पतिक नाम : Cissus quadrangularis) को आयुर्वेद में  हड्डियों के स्वास्थ्य के लिये रामबाण बताया गया है.

हड्डियों के लिये हडजोड की उपयोगिता इसमें उपलब्ध एनाबोलिक होर्मोंस (Anabolic hormones) के कारण होती है क्योकि ये होर्मोंस ही रक्त के कैल्शियम को हड्डियों तक पहुंचाने का कार्य करते हैं.

एनाबोलिक होर्मोंस हमारे शरीर में ही बनते हैं लेकिन उम्र के बढ़ाव के साथ इनकी उत्पत्ति कम होती जाती है. परिणामस्वरूप, कैल्शियम भी ठीक प्रकार से हड्डियों में नहीं पहुँच पाता और हमारी हड्डियाँ पोली, झरझरी और कमज़ोर होने लगती हैं.  इसी विसंगति को ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) रोग कहा जाता है.
Osteoporosis के चलते अकारण फ्रैक्चर होने लगते हैं जिन्हें ठीक होने में  सामान्य से अधिक समय लगने लगता है.

ऑस्टियोपोरोसिस की  समस्या पुरुषों की अपेक्षा प्रौड़ महिलाओं में अधिक पाई जाती है. ये इस कारण, क्योंकि बढ़ती आयु में Menopause अथवा मासिक धर्म बंद होने के कारण कई hormonal बदलाव आते हैं जिनके कारण कैल्शियम का अवशोषण कम हो जाता है.

ये अलग बात है कि जब तक महिलाओं की मासिक धर्म क्रिया चलती रहती है, उनकी कैल्शियम अवशोषण प्रणाली पुरुषों से लगभग डेढ़ गुना अधिक रहती है.

हडजोड की पहचान
हड़जोड़ को अस्थि श्रृंखला के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बेल है जिसमें हर चार से छह इंच के खंडाकार (Blocks) बाद एक जोड़ वाली गांठ रहती है. नाम अनुरूप ये मानव की बाँहों या जांघों की हड्डियों का भान कराती है।

हर गांठ से एक अलग पौधा पनप सकता है। चतुष्कोणीय (Quadrangular) तने में हृदय (Heart)के आकार वाली पत्तियां होती है। छोटे फूल लगते हैं। पत्तियां छोटी-छोटी होती है और लाल रंग के मटर के दाने के बराबर फल लगते हैं। यह बरसात में फूलती है और जाड़े में फल आते हैं.

दक्षिण भारत और श्रीलंका में इसके तने को साग व चटनी के रूप में प्रयोग करते हैं। इसकी सब्जी भी बनाई जाती है.

आदिवासी बहुल मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के हिस्सों में इसको पीस कर उड़द या मूग मिलाकर बड़ियाँ  भी बनाई जाती हैं.

कैसे करें उपयोग
कृपया ध्यान रखें, हडजोड को कभी भी कच्चा न खाएं. कच्चे हडजोड का स्वाद कच्ची अरबी या कटहल जैसा तेज़ होता है, जिससे मुहं में जलन, छाले हो सकते हैं. हडजोड का उपयोग हमेशा उबालकर या तलकर ही करें.

500 ग्राम ताज़ी या 100 ग्राम सूखी वनस्पति से एक लीटर काढ़ा तैयार करें.  इस काढ़े की 30 से 50 मिलीलीटर तक की मात्रा दिन में दो बार ली जा सकती है.

हडजोड को अन्य long fried या long pressure cooked व्यंजनों जैसे, राजमाह, चना या करेले, कटहल, जिमीकंद इत्यादि में भी मिलाया जा सकता है.

सारशब्द
हडजोड बढ़ती उम्र के रोगों जैसे ऑस्टियोपोरोसिस, आर्थराइटिस, उच्च रक्तचाप, जोड़ों व शरीर के दर्द व कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में लाभकारी है. इसका नियमित उपयोग हमें महगी चिकित्सा से बचा सकता है.


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