सामान्य जीवन में छोटी-मोटी घटनाएं या दूर्घटनाएं होना आम बात है। ऐसी ही एक दुर्घटना है किसी भी प्रकार की चोट लगना। कई बार चोट की मार बहुत अधिक होती है ऐसे में बहुत पेनकिलर खाने पर भी आराम नहीं होता।
अगर आपके साथ भी यह समस्या है चोट लगी है व दर्द और सूजन है तो ऐसे में निर्गुण्डी की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम है। इसका पौधा सारे भारत मे, विशेषकर गर्म प्रदेशों में पाया जाता है।
इस तरह के पौधे की गंध तेज है। इसका सबसे ज्यादा उपयोग सूजन दूर करने में किया जाता है। हर प्रकार की सूजन दूर करने के लिए प्रयोग विधि इस प्रकार है।
प्रयोग-
निर्गुण्डी के पत्तों को पानी में उबालें। जब भाप उठने लगे तब बरतन पर जाली रख दें। दो छोटे कपड़े पानी में भिगोकर निचोड़ ले। तह करके एक के बाद एक जाली पर रख कर गर्म करें। सूजन या दर्द के स्थान पर रख कर सेंक करें। चोंट मोंच का दर्द, जोड़ों का दर्द, कमर दर्द और गैस के कारण होने वाला दर्द दूर करने के लिए यह उपाय बहुत गुणकारी है। कफ, बुखार व फेफड़ों में सूजन को दूर करने के लिए इसके पत्तों का रस निकालकर 2 बड़े चम्मच मात्रा में, 2 ग्राम पिसी पिप्पली मिलाकर दिन में दो बार सुबह शाम पीएं व पत्तों को गर्म कर पीठ पर या छाती पर बांधने से आराम होता है।
परिचय :
1. इसे निर्गुण्डी (संस्कृत), सम्हालू (हिन्दी), तिशिन्दा (बंगाली), निगड (मराठी), नगद (गुजराती), नौची (तमिल), तेल्लावाविली (तेलुगु), अस्लक (अरबी) तथा वाइटेक्स निगण्डो (लैटिन) कहते हैं।
2. निर्गुण्डी का झाड़ीदार पौधा 8-10 फुट ऊँचा होता है। पत्ते अरहर के पत्तों के समान, एक डंठल पर तीन पत्रक (पत्र की पंखुड़ी), नीचे की सतह पर सफेदी लिये, कभी कटे, तो कभी बिना कटे, 1-5 इन्च लम्बे होते हैं। फूल छोटे, गुच्छेदार, नीलापन लिये तथा फल छोटे और पकने पर काले हो जाते हैं।
3. यह भारत में, विशेषत: बगीचों तथा पर्वतीय स्थानों में मिलती है। यह सर्वसुलभ है।
4. इसके दो भेद हैं : (क) निर्गुण्डी (नीचे फूलवाली) तथा (ख) सिन्दुवार (सफेद फूलवाली)। सिन्दुवार (सम्हालू) का पौधा बड़ा होता है।
रासायनिक संघटन :
इसके पत्तों में सुगन्धित उड़नशील तेल और राल होती है। फल में रेजिन एसिड, मैलिक एसिड, एल्केलायड तथा रंग-द्रव्य (कलरिंग मैटर) पाये जाते हैं।
निर्गुण्डी के गुण :
यह रस में कड़वी, चरपरी, पचने पर कड़वी तथा गुण में हल्की, रूक्ष है। नाड़ी-संस्थान पर इसका मुख्य प्रभाव पड़ता है। यह शोथहर, व्रण (घाव) की शोधक और भरनेवाली, केशों के लिए लाभकर, कीटाणुनाशक (एण्टीबायोटिक), कफहर, मूत्रजनक, आर्तवजनक, चर्म के लिए लाभकर, बल्य, रसायन तथा दृष्टि-शक्तिवर्धक है।
अगर आपके साथ भी यह समस्या है चोट लगी है व दर्द और सूजन है तो ऐसे में निर्गुण्डी की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम है। इसका पौधा सारे भारत मे, विशेषकर गर्म प्रदेशों में पाया जाता है।
इस तरह के पौधे की गंध तेज है। इसका सबसे ज्यादा उपयोग सूजन दूर करने में किया जाता है। हर प्रकार की सूजन दूर करने के लिए प्रयोग विधि इस प्रकार है।
प्रयोग-
निर्गुण्डी के पत्तों को पानी में उबालें। जब भाप उठने लगे तब बरतन पर जाली रख दें। दो छोटे कपड़े पानी में भिगोकर निचोड़ ले। तह करके एक के बाद एक जाली पर रख कर गर्म करें। सूजन या दर्द के स्थान पर रख कर सेंक करें। चोंट मोंच का दर्द, जोड़ों का दर्द, कमर दर्द और गैस के कारण होने वाला दर्द दूर करने के लिए यह उपाय बहुत गुणकारी है। कफ, बुखार व फेफड़ों में सूजन को दूर करने के लिए इसके पत्तों का रस निकालकर 2 बड़े चम्मच मात्रा में, 2 ग्राम पिसी पिप्पली मिलाकर दिन में दो बार सुबह शाम पीएं व पत्तों को गर्म कर पीठ पर या छाती पर बांधने से आराम होता है।
परिचय :
1. इसे निर्गुण्डी (संस्कृत), सम्हालू (हिन्दी), तिशिन्दा (बंगाली), निगड (मराठी), नगद (गुजराती), नौची (तमिल), तेल्लावाविली (तेलुगु), अस्लक (अरबी) तथा वाइटेक्स निगण्डो (लैटिन) कहते हैं।
2. निर्गुण्डी का झाड़ीदार पौधा 8-10 फुट ऊँचा होता है। पत्ते अरहर के पत्तों के समान, एक डंठल पर तीन पत्रक (पत्र की पंखुड़ी), नीचे की सतह पर सफेदी लिये, कभी कटे, तो कभी बिना कटे, 1-5 इन्च लम्बे होते हैं। फूल छोटे, गुच्छेदार, नीलापन लिये तथा फल छोटे और पकने पर काले हो जाते हैं।
3. यह भारत में, विशेषत: बगीचों तथा पर्वतीय स्थानों में मिलती है। यह सर्वसुलभ है।
4. इसके दो भेद हैं : (क) निर्गुण्डी (नीचे फूलवाली) तथा (ख) सिन्दुवार (सफेद फूलवाली)। सिन्दुवार (सम्हालू) का पौधा बड़ा होता है।
रासायनिक संघटन :
इसके पत्तों में सुगन्धित उड़नशील तेल और राल होती है। फल में रेजिन एसिड, मैलिक एसिड, एल्केलायड तथा रंग-द्रव्य (कलरिंग मैटर) पाये जाते हैं।
निर्गुण्डी के गुण :
यह रस में कड़वी, चरपरी, पचने पर कड़वी तथा गुण में हल्की, रूक्ष है। नाड़ी-संस्थान पर इसका मुख्य प्रभाव पड़ता है। यह शोथहर, व्रण (घाव) की शोधक और भरनेवाली, केशों के लिए लाभकर, कीटाणुनाशक (एण्टीबायोटिक), कफहर, मूत्रजनक, आर्तवजनक, चर्म के लिए लाभकर, बल्य, रसायन तथा दृष्टि-शक्तिवर्धक है।
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